झारखण्ड
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने देशभर में थाई मांगुर मछली की खरीद-बिक्री और इसके पालने पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद धनबाद के रास्ते प्रतिबंधित मांगुर मछली का कारोबार चल रहा है। हर दिन 100 टन से अधिक प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली बांग्लादेश से धनबाद के रास्ते उत्तर प्रदेश के शहरों में पहुंचाई जा रही है। धनबाद में प्रतिबंधित मांगुर मछली के अवैध कारोबार को रोकने के लिए डीसी ने एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी में जिला मत्स्य पदाधिकारी, संबंधित थाना के प्रभारी और एसडीओ को शामिल किया गया है। कमेटी के बने हुए 1 साल हो गए लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ खास नहीं हो रहा है। 2 दिन पहले गोविंदपुर में स्थानीय युवकों ने प्रतिबंधित मांगुर से भरी गाड़ी पकड़ी तो स्थानीय पुलिस ने उनके साथ मारपीट की। युवकों ने यह आरोप लगाते हुए शिकायत की है। गोविंदपुर में पकड़ाई मांगुर मछली को जांच के लिए रांची लैब में भेजा गया है।

यूपी में 400 रुपए किलो बिक रही
बांग्लादेश और बंगाल की सीमा में बसे गांवों में थाई मांगुर मछली का पालन किया जाता है। वहां यह मछली 60-70 रुपए किलो खरीदकर यूपी में 400 रुपए किलो तक बेची जाती है। धनबाद से गुजरने वाली एक गाड़ी में 10 टन मांगुर मछली रहती है। ऐसी 10 गाड़ियां हर दिन मैथन चेकपोस्ट के रास्ते गोविंदपुर होते हुए यूपी के लिए निकल जाती हैं।

थाई मांगुर मछली खाने से कैंसर का खतरा
केंद्र सरकार ने वर्ष 2000 में थाई मांगुर के पालन, विपणन, संवर्धन पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन इसके बावजूद मछली मंडियों में इसकी खुलेआम बिक्री हो रही है। थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे हैं क्योंकि यह मछली 4 महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड एवं आयरन के तत्व पाए जाते हैं, जिससे कैंसर का खतरा रहता है।