यूपी  

कांग्रेस और बसपा से गठबंधन के बावजूद विधानसभा और लोकसभा में हार देख चुके अखिलेश यादव इस बार काफी सतर्क हैं और समय पर सब काम निपटाना चाहते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा, सपा और आरएलडी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था लेकिन बहुत कामयाबी नहीं मिली। तब अखिलेश की पार्टी ने कैंडिडेट तय करने में काफी देर की थी। इस बार अखिलेश समय पर गठबंधन और कैंडिडेट दोनों तय कर लेने के मूड में हैं ताकि जमीन पर गठबंधन के वोटर, कार्यकर्ता और नेता भी दिल मिला सकें। सूत्रों का दावा है कि अखिलेश 50 सीट चुन चुके हैं जहां हर हाल में सपा लड़ेगी और इनमें कुछ सीटों पर कैंडिडेट को इशारा भी मिल चुका है कि क्षेत्र में उतर जाएं और तैयारी करें।

अखिलेश इन दिनों एक-एक लोकसभा सीट के लिए उस इलाके के कई नेताओं और प्रमुख कार्यकर्ताओं को बुलाकर मिल रहे हैं और उनसे सीट के मूड, माहौल और कैंडिडेट पर गहराई से चर्चा कर रहे हैं। नेताओं की मानें तो अखिलेश कांग्रेस से गठबंधन के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो चुके हैं। कुछ समय पहले अखिलेश कांग्रेस और बीजेपी को एक सिक्के का दो पहलू बताते थे। ये तक कहा गया था सपा इस बार अमेठी सीट पर भी कैंडिडेट देगी। लेकिन कर्नाटक के चुनावों में कांग्रेस की जीत ने माहौल बदला है। बीजेपी विरोधी दलों को लग रहा है कि मुसलमान कांग्रेस की तरफ लौट रहे हैं और ऐसे में बीजेपी को हराने के लिए मुस्लिम वोट का बंटवारा रोकना है तो कांग्रेस से हाथ मिलाना होगा। यूपी में सपा और आरएलडी का गठबंधन पहले से है जिसके नेता जयंत चौधरी भी चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा जाए।