नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के बाद संसद का पहला सत्र चल रहा है. नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों के शपथग्रहण और स्पीकर चुनाव के बाद आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित कर रही हैं. इन सब के बीच संसद में स्थापित किए गए सेंगोल पर सियासत गर्म हो चुकी है. विपक्षी दलों ने संसद भवन में स्पीकर के आसन के पास स्थापित सेंगोल को हटाने की मांग शुरू कर दी है. समजवादी पार्टी (SP) ने सेंगोल को राजशाही का प्रतीक बताते हुए उसे हटाकर उसकी जगह संविधान स्थापित करने की मांग की है.

'संविधान महत्वपूर्ण है…'

समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद आरके चौधरी ने कहा है कि संविधान महत्वपूर्ण है, लोकतंत्र का प्रतीक है. अपने पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने संसद में 'सेंगोल' स्थापित किया. 'सेंगोल' का अर्थ है 'राज-दंड', इसका अर्थ 'राजा का डंडा' भी होता है. रियासती व्यवस्था को खत्म करके देश आजाद हुआ. देश 'राजा के डंडे' से चलेगा या संविधान से? मैं मांग करता हूं कि संविधान को बचाने के लिए संसद से सेंगोल को हटाया जाए.

क्या बोले अखिलेश यादव?

आरके चौधरी के बयान पर समाजवादी पार्टी के मुखिया और सांसद अखिलेश का भी बयान आया है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हमारे सांसद शायद ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब इसे (सेंगोल) स्थापित किया गया था, तो प्रधानमंत्री ने इसके सामने सिर झुकाया था. शायद शपथ लेते वक्त वह इसे भूल गए, हो सकता है कि मेरी पार्टी ने उन्हें यह याद दिलाने के लिए ऐसा कहा हो. जब प्रधानमंत्री इसके सामने सिर झुकाना भूल गए, तो शायद वह भी कुछ और चाहते थे.

सपा नेता के बयान पर शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने कहा कि संविधान अहम है, हम इंडिया ब्लॉक में इस पर चर्चा करेंगे.

एसपी को कांग्रेस और आरजेडी का समर्थन

वहीं, कांग्रेस पार्टी ने सेंगोल मुद्दे पर समाजवादी पार्टी का समर्थन किया है. पार्टी ने कहा कि सेंगोल पर एसपी की मांग गलत नहीं है.

कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने कहा कि बीजेपी ने अपनी मर्जी से सेंगोल लगा दिया .. सपा की मांग गलत नहीं है. सदन तो सबको साथ लेकर चलती है लेकिन बीजेपी सिर्फ मनमानी करती है.

सेंगोल मुद्दे पर आरजेडी लीडर मीसा भारती ने कहा कि सेंगोल को हटाना चाहिए, ये लोकतंत्र में है, राजतंत्र में नहीं. सेंगोल को म्यूजियम में लगाना चाहिए. यह राजतंत्र का प्रतिक है, सेंगोल इसलिए हटाना चाहिए.

'मोदी जी संविधान को…'

बीजेपी के लोकसभा सांसद खगेन मुर्मू ने आरके चौधरी के बयान पर कहा कि इन लोगों को कोई दूसरा काम नहीं है. इन्होंने संविधान के बारे में गुमराह किया है. ये लोग संविधान को मानते ही नहीं हैं. मोदी जी संविधान को बहुत सम्मान देते हैं.

एसपी नेता के बयान पर बीजेपी सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि सेंगोल राष्ट्र का प्रतीक है. सेंगोल को स्थापित किया गया था, उसको अब कोई नहीं हटा सकता.

केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने कहा कि ये लोग यही सब काम करते हैं, ये देश का सर्वोच सदन है. ये लोग सुर्खियों में आने के लिए सस्ती बातें करते हैं. संविधान को हम सभी मानते हैं, अकेले समाजवादी पार्टी ने संविधान का ठेका नहीं लिया है.

'पतन की शुरुआत…'

आरके चौधरी के बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री और एलजेपी नेता चिराग पासवान ने कहा, "इनकी जनता ने इनको काम करने के लिए चुना है और यहां संसद में आकर ये लोग सिर्फ विवाद पैदा करते हैं. ये लोग सकारात्मक राजनीति कर सकते हैं. ये लोग सिर्फ बंटवारे की राजनीति करते हैं.

बीजेपी सांसद रवि किशन ने कहा कि जीते हैं ये लोग अच्छी बात है लेकिन इनकी मति भ्रमित हो गई है. ये लोग अपने सांसद की तुलना भी भगवान राम से करने लगे हैं, इनके पतन की शुरूआत हो गई है.

आजादी से जुड़ा है सेंगोल का आधुनिक इतिहास

संसद में स्थापित किए गए सेंगोल का आधुनिक इतिहास भारत की आजादी के साथ जुड़ा हुआ सामने आया है, जब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा गया. वहीं, प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासन से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था. यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी.

5000 साल पुराने महाभारत में भी मिलता है इतिहास

रामायण-महाभारत के कथा प्रसंगों में भी ऐसे उत्तराधिकार सौंपे जाने के ऐसे जिक्र मिलते रहे हैं. इन कथाओं में राजतिलक होना, राजमुकुट पहनाना सत्ता सौंपने के प्रतीकों के तौर पर इस्तेमाल होता दिखता है, लेकिन इसी के साथ राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थी, जिसे राजदंड कहा जाता था. इसका जिक्र महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के दौरान भी मिलता है. जहां शांतिपर्व में इसके जिक्र की बात करते हुए कहा जाता है कि 'राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है.'

ऐसी थी राजदंड की अवधारणा

राजतिलक और राजदंड की वैदिक रीतियों में एक प्राचीन पद्धति का जिक्र होता है. इसके अनुसार राज्याभिषेक के समय एक पद्धति है. राजा जब गद्दी पर बैठता है तो तीन बार ‘अदण्ड्यो: अस्मि’ कहता है, तब राजपुरोहित उसे पलाश दंड से मारता हुआ कहता है कि ‘धर्मदण्ड्यो: असि’. राजा के कहने का तात्पर्य होता है, उसे दंडित नहीं किया जा सकता है. ऐसा वह अपने हाथ में एक दंड लेकर कहता है. यानि यह दंड राजा को सजा देने का अधिकार देता है, लेकिन इसके ठीक बाद पुरोहित जब यह कहता है कि, धर्मदंडयो: असि, यानि राजा को भी धर्म दंडित कर सकता है.ऐसा कहते हुए वह राजा को राजदंड थमाता है. यानि कि राजदंड, राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का साधन भी रहा है. महाभारत में इसी आधार पर महामुनि व्यास, युधिष्ठिर को अग्रपूजा के जरिए अपने ऊपर एक राजा को चुनने के लिए कहते हैं.

सेम्मई शब्द से बना है सेंगोल

सेंगोल को और खंगालें तो कई अलग-अलग रिपोर्ट में  इसकी उत्पत्ति तमिल तमिल शब्द 'सेम्मई' से बताई गई है. सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा. यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे.