उज्जैन

महाकाल मंदिर के गर्भगृह में मंगलवार को वैशाख कृष्ण प्रतिपदा पर 11 मिट्टी के ‎कलशों की गलंतिका बांधी गई। कलशों पर नदियों के नाम गंगा, ‎सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, ‎कावेरी, सरयु, शिप्रा, गंडकी, बेतवा अंकित किए गए हैं।

ज्योतिर्लिंग की परंपरा अनुसार वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो माह प्रतिदिन सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक गलंतिका बांधी जाती है।

पं.महेश पुजारी ने बताया कि समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा हेतु कालकूट नामक विष का पान किया था। इसके पश्चात विष की उष्णता शांत करने के लिए भगवान शिव का निरंतर जलाभिषेक किया जाता है।

गर्मी के दिनों में विष की उष्णता बढ़ जाती है। इस कारण वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलशों से शीतल जलधारा प्रवाहित की जाती है। इन कलशों को गलंतिका कहा जाता है।

महाकाल मंदिर में बुधवार को वैशाख कृष्ण प्रतिपदा पर भगवान महाकाल को गलंतिका बांधी गई। यह गलंतिका ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक रहेगी। गलंतिका स्वरूप बंधे कलशों में प्रतीकात्मक स्वरूप में विभिन्न नदियों के नाम अंकित किए जाएंगे। ये नदियां हैं गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, नर्मदा, कावेरी, सरयू, शिप्रा, गंडक आदि। यह जलधारा प्रतिदिन भस्मारती पश्चात शुरू होकर सायं पूजन तक जारी रहेगी। प्रतिवर्ष मंदिर में वैशाख और ज्येष्ठ माह में अभिषेक पात्र (रजत कलश) के साथ मिट्टी के 11 कलशों के साथ गलंतिका बांधी जाती है।

मंगलनाथ व अंगारेश्वर में भी बंधेगी गलंतिका

मंगलनाथ व अंगारेश्वर महादेव मंदिर में भी वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से गलंतिका बांधी जाएगी। अंगारेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी ने बताया भूमिपुत्र महामंगल को अंगारकाय कहा जाता है। मंगल की प्रकृति गर्म होने से गर्मी के दिनों में अंगारक देव को शीतलता प्रदान करने के लिए गलंतिका बांधी जाती है। इस बार भी बुधवार से गलंतिका बांधने का क्रम शुरू होगा।