नई दिल्ली
हाल के वर्षों में कई देशों के सेंट्रल बैंकों ने जमकर सोने की खरीदारी की है। इनमें भारत, चीन और तुर्की जैसे देशों के सेंट्रल बैंक शामिल हैं। इस वजह से साल 2023 के अंत में केंद्रीय बैंकों के भंडार में सोने की हिस्सेदारी 17.6 फीसदी पहुंच गई है। यह 27 साल में सबसे ज्यादा है। यानी यह साल 1997 के बाद सोने की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। 2016 के बाद से सेंट्रल बैंकों के भंडार में सोने की हिस्सेदारी दोगुनी हो गई है। अब उनके भंडार में सोना दूसरी सबसे बड़ी एसेट है और उसने पहली बार यूरो को पीछे छोड़ा है। यूएस डॉलर अब भी केंद्रीय बैंकों के भंडार में सबसे बड़ा एसेट है। लेकिन इसकी हिस्सेदारी में गिरावट आई है। 2017 में केंद्रीय बैंकों के भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी 60 फीसदी थी जो अब 48 फीसदी रह गई है।

इस बीच इस साल की पहली तिमाही में दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने रेकॉर्ड 290 टन सोना खरीदा। केंद्रीय बैंकों के भारी मात्रा में सोना खरीदने के कारण सोने की कीमत में हाल में काफी तेजी आई है। एक जमाना था जब दुनिया के केंद्रीय बैंकों के रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा थी। साल 1935 तक यह स्थिति रही लेकिन उसके बाद सोने की हिस्सेदारी लगातार घटती गई। 2010 के दशक में यह करीब 13 फीसदी के आसपास रह गया था। लेकिन पिछले कुछ सालों से केंद्रीय बैंक डॉलर पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं लेकिन सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि डॉलर की गिरती परचेजिंग पावर से बचने के लिए सोना सबसे बेहतर है।

2022 और 2023 में केंद्रीय बैंकों ने 1,000 टन से अधिक सोना खरीदा। इस साल पहली तिमाही में ही यह आंकड़ा 290 टन पहुंच चुका है। बोफा ग्लोबल रिसर्च के मुताबिक 2020 में सेंट्रल बैंक्स ने करीब 250 टन और 2021 में 400 टन सोना खरीदा था। साल 2010 में दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने करीब 100 टन सोना खरीदा था। उससे अगले साल यानी 2011 में यह आंकड़ा 500 और 2012 में 600 टन रहा। वर्ष 2013 में इन बैंकों ने करीब 640 टन सोना खरीदा लेकिन साल 2014 में यह आंकड़ा फिर 600 टन पर आ गया। साल 2015 में इसमें मामूली गिरावट आई लेकिन वर्ष 2016 में यह 400 टन से नीचे आ गया। साल 2017 में इसमें और गिरावट आई लेकिन वर्ष 2018 में एक बार फिर सोने की खरीद 600 टन के ऊपर पहुंच गई। इसके बाद साल 2019 में सेंट्रल बैंक्स ने करीब 600 टन सोने की खरीद की।

डॉलर की गिरती परचेजिंग पावर से बचने के लिए सोने को सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है। पिछले 110 साल से ऐसा होता आया है और आगे भी होता रहेगा। जब करेंसी और इकॉनमी को खतरा होता है तो भी सेंट्रल बैंक बड़े पैमाने पर सोना खरीदते हैं। खासकर चीन आर्थिक मोर्चे पर कई दिक्कतों का सामना कर रहा है। अगर चीन की इकॉनमी डूबती है तो इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकता है। यही वजह है कि चीन का सेंट्रल बैंक और आम लोग जमकर सोने की खरीदारी कर रहे हैं। दुनिया में सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका के सरकारी खजाने में करीब 8,133 टन सोना है। इस मामले में दुनिया का कोई देश अमेरिका के आसपास भी नहीं है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक मार्च के अंत में RBI के पास 822.1 टन सोना था।