नई दिल्ली

बात साल 2016 की है। समाजवादी पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। विदेश से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पढ़ाई करने वाले अखिलेश की राजनीति पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीति से अलग रूप ले रही थी। वह राजनीति में साफ-सुथरी छवि, लैपटॉप और अंग्रेजी को बढ़ावा दे रहे थे जबकि उनके पिता अंग्रेजी और कम्प्यूटर के खिलाफ रहे थे।

राजनीति और सरकार में सफाई चाहते थे अखिलेश:
अखिलेश पार्टी में दबंग और माफिया डॉन टाइप के लोगों को लेकर भी पिता मुलायम और चाचा शिवपाल सिंह यादव की रणनीति से अलग चल रहे थे। राजनीति में भ्रष्टाचार और गुंडई के खिलाफ अपनी रणनीति को लेकर अखिलेश यादव अपने ही घर में लड़ाई लड़ रहे थे। मुलायम के परिवार और पार्टी में पहली बार तकरार हुआ था।

शिवपाल के खास लोगों पर गिरी गाज:
तकरार इतना बढ़ गया था कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सितंबर 2016 में भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री गायत्री प्रजापति और राज किशोर को बर्खास्त कर दिया था। इसके अगले ही दिन उन्होंने मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को भी पद से हटा दिया था। सिंघल इससे पहले शिवपाल के विभाग यानी सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव थे। ये तीनों शिवपाल गुट के माने जाते थे।

भतीजे ने चाचा को हटाया:
इसके बाद सपा में झगड़ा इतना बढ़ गया कि मुलायम सिंह यादव ने मामले में दखल देते हुए अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। बौखलाए अखिलेश ने चाचा शिवपाल से सभी मंत्रालय छीन लिए। अखिलेश के पलटवार से गुस्साए शिवपाल ने तब पार्टी और सरकार में सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। भाई और बेटे के बीच बढ़ती रार को देखते हुए मुलायम ने बीच-बचाव किया और अखिलेश के सभी फैसले रद्द कर दिए।

अतीक अहमद पर रार:
2017 में यूपी विधान सभा चुनाव होने वाले थे। सपा के अंदर परिवार और पार्टी के मोर्चे पर जबरदस्त संघर्ष चल रहा था। अखिलेश की नाराजगी के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने माफिया डॉन अतीक अहमद को कानपुर कैंट से उम्मीदवार बना दिया था। इसके साथ ही शिवपाल ने विधानसभा चुनावों के लिए 22 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया था। उनमें दूसरे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई को भी टिकट दिया गया था।

शिवपाल के इस कदम से अखिलेश यादव और भड़क गए। वह मुख्तार की पार्टी कौमी एकता दल के विलय से भी नाराज थे। भड़के अखिलेश ने न केवल अतीक अहमद का टिकट काट दिया बल्कि इन सीटों पर अपने चहेतों को टिकट दे दिया। इसके फौरन बाद अतीक अहमद ने शिवपाल से और फिर शिवपाल की मौजूदगी में ही मुलायम सिंह यादव से घंटों लंबी बैठक और चर्चा की थी। इसके बाद नाराज मुलायम ने बेटे अखिलेश को ही छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इस फैसले के खिलाफ अखिलेश समर्थक हजारों सपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए थे।

अखिलेश ने कर दिया तख्तापलट :
इस घटना के बाद अखिलेश यादव ने 2017 के जनवरी के पहले हफ्ते में ही पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया और चाचा शिवपाल को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। इससे नाराज शिवपाल ने पार्टी ही छोड़ दी और सपा दो फाड़ हो गई।