मुंबई
महाराष्ट्र में चल रहे सियासी संकट के बीच उद्धव ठाकरे सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। दरअसल उद्धव ठाकरे की ओर से कहा गया था कि फिलहाल फ्लोर टेस्ट ना कराया जाए और इसके खिलाफ अंतरिम आदेश जारी किया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। फ्लोर टेस्ट के खिलाफ अंतरिम आदेश के लिए याचिका की गुहार वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने लगाई थी। कामत कोर्ट में अनिल चौधरी और सुनील प्रभु की ओर से पेश हुए।
 
कोर्ट में कामत ने बेंच से अपील की कि फ्लोर टेस्ट के खिलाफ अंतरिम आदेश दिया जाए। जस्टिस सूर्य कांत और जेपी पारदीवाला ने 27 जून को शिवसेना के बागी विधायकों को 12 जुलाई तक लिखित में अपना जवाब देने के लिए कहा है। डिप्टी स्पीकर ने इन विधायकों को नोटिस जारी करके 27 जून तक जवाब मांगा था, जिसके खिलाफ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बागी विधायकों को राहत दी। इस मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी। बेंच ने प्रदेश सरकार से इस बात का भरोसा लिया कि 39 विधायकों की जान-माल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचेगा, उनकी संपत्ति को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा चाहिए,जोकि फिलहाल गुवाहाटी के होटल में ठहरे हैं।
 
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कामत ने कोर्ट से गुहार लगाई कि वह जबतक मामले का फैसला नहीं हो जाता है फ्लोर टेस्ट ना कराया जाए और इसको लेकर एक अंतरिम आदेश जारी किया जाए। जिसपर कोर्ट ने कहा कि क्या हम कल्पना के आधार पर फैसला दे सकते हैं। कामत ने कहा कि हमारा मानना है कि ये विधायक फ्लोर टेस्ट की मांग करेंगे। जोकि यथास्थिति को बदल देगा। बेंच ने कहा कि अगर कुछ भी गलत होता है कोर्ट का दरवाजा खुला है।

बता दें कि एकनाथ शिंदे और उनके साथ के बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। डिप्टी स्पीकर ने इन विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए नोटिस जारी किया था। बागी विधायकों का कहना था कि डिप्टी स्पीकर के पास यह अधिकार ही नहीं है कि वह अयोग्यता की प्रक्रिया शुरू कर सके। वरिष्ठ वकील नीर किशन कौल ने संविधान का हवाला देते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने 2016 में संवैधानिक पीठ द्वारा दिए गए फैसले का जिक्र किया।