नई दिल्ली इंदौर

दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में मंगलवार को सभी तेल-तिलहनों के भाव तेजी के साथ बंद हुए। सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, सीपीओ, पामोलीन, बिनौला सहित अन्य तेल-तिलहनों के भाव मजबूत हो गए। वहीं, इंदौर के अनाज मंडी में मंगलवार को मूंग 100 रुपये, तुअर (अरहर) 100 रुपये और उड़द के भाव में 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी हुई।

रुपये में ऐतिहासिक गिरावट से आयातकों को नुकसान
बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में तेल-तिलहनों के भाव टूटने और रुपये में ऐतिहासिक गिरावट आने से आयातकों को काफी नुकसान हो रहा है। दूसरा उनके द्वारा लिए गए कर्ज के लिए आयातकों को डॉलर के मजबूत होने से रुपये में कर्ज का अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। आयातक दोहरी मार झेल रहे हैं।

विदेशों में तेल कीमतों में मंदी
सबसे बड़ी बात यह है कि विदेशों में तेल कीमतों में मंदी तो आई पर देश में इसका समुचित लाभ न तो तेल उद्योग को, न उपभोक्ता को, न किसानों को मिल पाया। जिस सीपीओ तेल का आयात 2,010 डॉलर प्रति टन के भाव किया जाता था, वह मंदी की चपेट में बाजार टूटने के बाद अब 28 जून को 1,340 डॉलर प्रति टन रह गया है, लेकिन उपभोक्ताओं को पामोलीन के भाव में लगभग 55 रुपये लीटर की आई गिरावट के बावजूद यह तेल महज 10-15 रुपये लीटर सस्ता मिल रहा है।

सोयाबीन स्टॉक होने के बावजूद आयात
दूसरा सवाल है कि जब देश में सोयाबीन का पूरा स्टॉक था तो डीओसी का आयात क्यों खोला गया। अब मध्य प्रदेश में सोयाबीन की जगह किसान मक्के का रुख कर रहे हैं, जिसमें लागत कम है। किसान डीओसी के निर्यात से होने वाली आय के चक्कर में भी सोयाबीन फसल बोते हैं पर स्पष्ट नीति न होने से वे जोखिम लेने से बचते दिख रहे हैं। पिछले साल भारत ने डीओसी का निर्यात किया था, लेकिन इस बार वैश्विक मांग कम है तो हम सोयाबीन स्टॉक होने के बावजूद आयात कर रहे हैं। सरकार को देश में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए एक ठोस नीति बनाकर काम करना होगा।

सूत्रों ने कहा कि 1989 के लगभग देश में पांच लाख टन पामतेल (सीपीओ) उत्पादन का मिशन शुरू किया था जो आज तक कोई परिणाम देने में विफल रहा है। तिलहन उत्पादन बढ़ाने की जबतक हमारी स्पष्ट नीति और किसानों को उनकी उपज बिक्री का भरोसा नहीं दिया जायेगा, तबतक तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना मुश्किल ही है।