मुंबई

टिकट न मिलने पर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कूदने वाले बागी महायुति और विपक्षी महा विकास आघाडी (एमवीए) के लिए सिरदर्द बन गए हैं। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 20 नवंबर को होने वाले चुनाव के वास्ते नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 29 अक्टूबर थी और उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच 30 अक्टूबर को की जाएगी। चुनावी जंग से नाम वापस लेने की अंतिम तिथि चार नवंबर है और इसके बाद मैदान में बचे बागियों की संख्या पर स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी।

महायुति ने जहां 80 बागियों की पहचान की है, वहीं विभिन्न दलों के करीब 150 नेताओं ने अपनी पार्टी या बहुदलीय गठबंधन के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है। नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 4 नवंबर है, इसलिए मोर्चों के पास मतभेदों को सुलझाने और बागियों को मैदान से हटने के लिए मनाने के लिए करीब एक सप्ताह का समय है।

एमवीए के 286 प्रत्याशियों का नामांकन

एमवीए और महायुति दोनों ने कहा कि उन्होंने सभी 288 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। नामांकन बंद होने के बाद, एमवीए के 286 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए (कांग्रेस से 103, उद्धव ठाकरे की शिवसेना 96 और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी से 87 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया है। तीनों दलों ने अपने-अपने कोटे से छोटे सहयोगियों को सीटें दीं।

महायुति से कितने प्रत्याशी?

महायुति में 284 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया है। बीजेपी, शिवसेना 80 और अजित पवार की एनसीपी से 52 प्रत्याशी हैं। जिसमें छोटे सहयोगी भी शामिल हैं। दोनों गठबंधनों ने कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों से जानकारी आने के बाद शेष सीटों का हिसाब लगाया जाएगा। हालांकि, महायुति सूची से ऐसा प्रतीत होता है कि इसने 5 निर्वाचन क्षेत्रों में दो उम्मीदवारों की घोषणा की है, और दो सीटों पर कोई भी उम्मीदवार नहीं हैं। इसने कुल 289 उम्मीदवारों की घोषणा की है।

बागियों से निपटना चुनौति

महायुति और एमवीए के प्रमुख नेताओं ने स्वीकार किया कि बागियों की मौजूदगी चिंता का विषय है और उन्हें इस मामले से निपटना होगा। ऐसा करने के लिए अभी भी समय है। उम्मीदवारों के कागजात बुधवार को जांचे जाएंगे और 4 नवंबर को उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख है। इसके बाद, यह स्पष्ट हो जाएगा कि अभी भी कितने बागी मैदान में हैं।

महा विकास अघाड़ी में शुरू से रहा विवाद

कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, इस पर पखवाड़े भर से चल रहा असमंजस मंगलवार को खत्म हो गया। लेकिन कई दौर की बातचीत के बावजूद महायुति ने सीट बंटवारे के अपने फॉर्मूले को पूरी तरह से गुप्त रखा, जबकि एमवीए का फॉर्मूला सार्वजनिक रूप से बदलता रहा। शुरू में यह प्रस्ताव था कि कांग्रेस 103 सीटों पर, यूबीटी शिवसेना 90 सीटों पर और एनसीपी (एसपी) 85 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बाद में, यूबीटी शिवसेना सांसद संजय राउत ने 85-85 सीटों का फॉर्मूला प्रस्तावित किया और चूंकि इस पर कोई सहमति नहीं बन पाई, इसलिए कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट ने एक नया फॉर्मूला प्रस्तावित किया, जिसमें एमवीए के सभी घटक 90-90 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

यदि बागी चुनाव मैदान में डटे रहते हैं, तो वे आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती पैदा करेंगे। इतना ही नहीं वे महायुति और एमवीए के चुनावी गणित को बिगाड़ने का काम करेंगे। महायुति में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं, जबकि विपक्षी एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी शामिल हैं।

 

मुंबई में सबसे ज्यादा मुसीबत

प्रमुख दलों के बीच सबसे अधिक संख्या में उम्मीदवार उतारने वाली बीजेपी को मुंबई के साथ-साथ राज्य के अन्य हिस्सों में बागियों से संभावित नुकसान को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। भाजपा के बागियों में एक बड़ा नाम गोपाल शेट्टी का है। वह दो बार विधायक और मुंबई से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने मुंबई की बोरीवली विधानसभा सीट से पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजय उपाध्याय के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है।

 

इसलिए बढ़ी परेशानी

राजनीतिक पर्यवेक्षक अभय देशपांडे के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन में एनसीपी के प्रवेश ने भाजपा और शिवसेना के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। उन्होंने कहा, 'विधानसभा चुनाव आम तौर पर उम्मीदवारों की छवि पर लड़ा जाता है। दोनों पक्षों (महायुति और एमवीए) में कम से कम तीन प्रमुख राजनीतिक दल हैं, और यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए सीमित संख्या में सीट मिली हैं। भाजपा और शिवसेना के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी एनसीपी के साथ हाथ मिलाए जाने से उनके समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए जमीन पर एक बड़ी चुनौती पैदा हो गई है।'

ऐसे मामले भी हैं, जहां सहयोगी दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए हैं। उदाहरण के लिए, सोलापुर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस ने दिलीप माने को नामांकित किया, लेकिन उन्हें आधिकारिक उम्मीदवार का दर्जा नहीं मिला। उसकी सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) ने अमर पाटिल को टिकट दिया है। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में माने ने कहा, 'मुझे बताया गया था कि कांग्रेस की ओर से एबी फॉर्म मुझे दिया जाएगा। वह कभी नहीं आया, इसलिए मैंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने का फैसला किया।'

सोलापुर जिले के पंढरपुर-मंगलवेधा निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस और इसकी सहयोगी एनसीपी (एसपी) ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे हैं। पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) एमवीए की एक घटक है, फिर भी इसके बाबासाहेब देशमुख ने सोलापुर जिले के सांगोला निर्वाचन क्षेत्र में शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार के खिलाफ अपना नामांकन दाखिल किया है।

अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को भी बगावत का सामना करना पड़ रहा है। एनसीपी नेता छगन भुजबल के भतीजे समीर ने नासिक जिले के नंदगांव विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। वह शिवसेना उम्मीदवार और मौजूदा विधायक सुहास कांडे को चुनौती दे रहे हैं। एनसीपी की नासिक शहर इकाई के अध्यक्ष रंजन ठाकरे ने भी मौजूदा भाजपा विधायक देवयानी फरांडे के खिलाफ निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे के भाई भास्कर ने भी बगावत कर दी है और जालना क्षेत्र में शिवसेना उम्मीदवार अर्जुन खोतकर के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है। नागपुर जिले में भाजपा के मौजूदा विधायक कृष्णा खोपड़े को नागपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर राकांपा की बागी आभा पांडे से चुनौती मिल रही है।