भोपाल
मध्य प्रदेश के बड़ी खुशखबरी है. राज्य को एक और टाइगर रिजर्व मिल गया है. रातापानी प्रदेश का 8वां टाइगर रिजर्व होगा. सरकार ने इसका नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है. इस टाइगर रिजर्व में 90 बाघ हैं. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी ने साल 2022 में रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाने की मंजूरी दी थी. इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस साल जून में रातापानी को टाइगर रिजर्व के रूप में नोटिफाई करने के निर्देश दिए थे. सीएम यादव ने इसे पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में मील का पत्थर कहा है.

जानकारी के मुताबिक, रातापानी टाइगर रिजर्व का फोरेस्ट एरिया 1271.465 स्क्वेयर किमी है. इसमें से 763.812 स्क्वेयर किमी कोर और 507.653 स्क्वेयर किमी बफर एरिया होगा. इस टाइगर रिजर्व में 3 हजार से ज्यादा जानवर हैं. इसमें 90 बाघ, 70 तेंदुए, 500 से ज्यादा सांभर, 600 से ज्यादा चीतल, 8 भेड़िये हैं. इसका कोर एरिया भोपाल, रायसेन और सीहोर में होगा. बता दें, इस टाइगर रिजर्व में 9 गांव शामिल होंगे. इसके बनने से गांववालों के अधिकारों में सरकार कोई बदलाव नहीं करेगी. इससे टूरिज्म बढ़ेगा, रोजगार पैदा होंगे. इसके अलावा केंद्र सरकार से बजट मिलने से एनिमल मैनेजमेंट और बेहतर होगा. इसके अलावा यहां ईको सिस्टम डेवलप होगा. इससे भी गांववालों को लाभ मिलेगा. रातापानी टाइगर रिजर्व बनने से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पहचान ही बदल जाएगी.

लंबे समय से पेंडिंग था मामला

यह फैसला काफी समय से लंबित था। 2008 में NTCA से सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद भी राज्य सरकार ने टाइगर रिजर्व बनाने में देरी की थी। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से राज्य सरकार को अधिसूचना प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश देने का आग्रह किया था। उन्होंने इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते संघर्ष और बाघों की आबादी की रक्षा की जरूरत का हवाला दिया था। इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए अजय दुबे ने कहा कि मैं सरकार के फैसले से बहुत खुश हूं। इस अधिसूचना को खनन माफिया और क्षेत्र में निहित स्वार्थ रखने वाले लोग रोक रहे थे।

रायसेन और सीहोर जिले में है स्थित

रातपानी वन्यजीव अभ्यारण्य रायसेन और सीहोर जिलों में स्थित है। यह मध्य प्रदेश में बाघों के एक महत्वपूर्ण आवास का हिस्सा है। हाल के वर्षों में, सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से बाघ इस अभ्यारण्य और आसपास के वन क्षेत्रों में आने लगे हैं। बाघों के इन इलाकों में आने के बाद, 2007 में राज्य सरकार ने रतपानी और सिंघोरी अभ्यारण्यों को टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की थी।

2008 में मिल गई थी मंजूरी

NTCA ने 2008 में रिजर्व के लिए सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी थी। राज्य वन विभाग को रिजर्व की सीमाओं और कोर क्षेत्रों के लिए विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। इसके बावजूद, अंतिम अधिसूचना प्रक्रिया में कई देरी हुई। 2012 में, NTCA ने राज्य सरकार को रिमाइंडर जारी किए, जिसमें तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था।

देरी की वजह से बढ़ रहे थे बाघ और इंसानों के संघर्ष

PIL में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि रतपानी टाइगर रिजर्व को अंतिम रूप देने में देरी के कारण बाघ-मानव संघर्ष में वृद्धि हुई है। बाघ भोजन की तलाश में आबादी वाले इलाकों में भटक रहे हैं। अतिक्रमण और आवास क्षरण के कारण अभ्यारण्य के भीतर पर्याप्त शिकार की कमी ने इस स्थिति को और बदतर बना दिया है।

2011 में, स्थानीय रिपोर्टों ने भोपाल के बाहरी इलाके में बाघों और तेंदुओं की उपस्थिति पर प्रकाश डाला था। बढ़ती मांसाहारी आबादी का समर्थन करने के लिए 'शिकार आधार' की मांग की गई थी। संघर्ष तब एक दुखद मोड़ पर पहुंच गया जब 2012 में, एक बाघ भोजन की तलाश में मानव बस्तियों में भटक गया और ग्रामीणों द्वारा उसे बेरहमी से मार डाला गया। NTCA ने तुरंत इस स्थिति का संज्ञान लिया, लेकिन राज्य द्वारा रिजर्व अधिसूचना को पूरा करने में विफलता ने इस क्षेत्र को असुरक्षित छोड़ दिया।

बफर जोन में कई बुनियादी परियोजनाओं को मंजूरी दी

इस मुद्दे को और जटिल बनाते हुए, मध्य प्रदेश के राज्य वन्यजीव बोर्ड (SWB) ने रिजर्व के प्रस्तावित बफर ज़ोन में कई बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंज़ूरी दे दी। इनमें कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट, 765kV ट्रांसमिशन लाइन और एक रेलवे लाइन शामिल हैं। ये मंजूरियां बाघों के आवास पर संभावित प्रभाव पर विचार किए बिना दी गई थीं। उच्च न्यायालय में दायर PIL ने इन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया। अदालत से राज्य सरकार को तुरंत रिजर्व को अधिसूचित करने का निर्देश देने की मांग की गई।

याचिकाकर्ताओं ने SWB द्वारा अनुमोदित परियोजनाओं को निलंबित करने की भी मांग की जो प्रस्तावित टाइगर रिजर्व के कोर और बफर क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

याचिका के जवाब में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि NTCA की वैधानिक मंज़ूरी और संरक्षण की ज़रूरत के बावजूद, राज्य के अधिकारियों ने अभ्यारण्य के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए पर्याप्त तेज़ी से काम नहीं किया। अदालत ने राज्य सरकार से टाइगर रिजर्व की अधिसूचना को अंतिम रूप देने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया था।
प्रबंधन एक चुनौती है

उन्होंने कहा है कि अधिसूचना एक महत्वपूर्ण पहला कदम है, लेकिन अब असली चुनौती रिजर्व के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने में है। इसमें स्पष्ट सीमाएं स्थापित करना, शिकार को रोकना और वन्यजीव-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ना शामिल है।

सीएम यादव ने कही ये बात
इस टाइगर रिजर्व के बनने
के बाद सीएम मोहन यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच और कुशल मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश ने पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित किया है. रायसेन जिले में स्थित रातापानी को अब प्रदेश का 8वां टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है. यह निर्णय न केवल बाघों की सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरण संतुलन को भी नई दिशा देगा.