पुरी

उड़ीसा के पुरी में 7 जुलाई से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू होने जा रही है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं। ऐसी मान्यता है कि रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है।आपको बता दें कि हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा का आरंभ होता है। इसके साथ ही आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ होता है।

 53 साल बाद बन रहा अद्भभुत संयोग

पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की तिथियां घट गई है। ऐसे में रथयात्रा के पहले की सभी परंपराएं 7 जुलाई तक चलेंगी। इसके बाद सुबह के बजाय शाम को रथयात्रा शुरू होगी। लेकिन रथयात्रा के बाद रथ नहीं हांका जाता है। इसलिए रात को रथ रोक दिया जाएगा और 8 जुलाई को जल्द सुबह रख चलाना शुरू होगा।बता दें कि तिथियों का ऐसा संयोग साल 1971 को बना था।

अलग-अलग रथ में सवार होते हैं श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी

जगन्नाथ रथयात्रा में 3 रथ निकाले जाते हैं, जो कृमश: श्री कृष्ण, बलराम और उनकी बहन सुभद्रा का होता है। हर एक रथ अपने आप पर खास होता है। पहला रथ जगन्नाथ जी का होता है, जिसे नंदीघोष कहा जाता है। इसके साथ ही इसमें लहरा रही ध्वजा को त्रैलोक्य मोहिनी कहा जाता है। इस रथ में कुल 16 पहिए होते हैं। दूसरा रथ भगवान बलराम का होता है। इस रथ को तालध्वज कहा जाता है। इसके साथ ही रथ में लगे ध्वज को उनानी कहा जाता है। इस रथ में कुल 14 पहिए होते हैं। बता दें की तीसरा रथ भगवान जगन्नाथ की छोटी बहन सुभद्रा का होता है। इस रथ को पद्म ध्वज कहा जाता है। इस रथ में कुल 12 पहिए होते हैं।  

कैसे शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा
धार्मिक मान्‍यता के अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्‍छा प्रकट की। फिर दोनों भाइयों ने बड़े ही प्‍यार से अपनी बहन सुभद्रा के लिए भव्‍य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। रास्‍ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। तब से हर साल तीनों भाई-बहन अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्‍नाथजी का रथ होता है।

जगन्‍नाथ यात्रा का महत्‍व
भगवान जगन्‍नाथ और उनके भाई-बहन के रथ नीम की परिपक्‍व और पकी हुई लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इसे दारु कहा जाता है। रथ को बनाने में केवल लकड़ी को छोड़कर किसी अन्‍य चीज का प्रयोग नहीं किया जाता है। भगवान जगन्‍नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं और यह बाकी दोनों रथों से बड़ा भी होता है। रथ यात्रा में कुछ धार्मिक अनुष्‍ठान भी किए जाते हैं। मान्‍यता है कि इस रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है। जब तीनों रथ यात्रा के लिए सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और फिर रथों की पूजा की जाती है। उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्‍ते को साफ किया जाता है।

हर साल इस मजार पर क्‍यों रुकता है यह रथ भगवान जगन्‍नाथ का रथ अपनी यात्रा के दौरान मुस्लिम भक्‍त सालबेग की मजार पर कुछ देर के लिए जरूर रुकता है। माना जाता है कि एक बार जगन्‍नाथजी का एक भक्‍त सालबेग भगवान के दर्शन के लिए पहुंच नहीं पाया था। फिर उसकी मृत्‍यु के बाद जब उसकी मजार बनी तो वहां से गुजरते वक्‍त रथ खुद ब खुद वहां रुक गया। फिर उसकी आत्‍मा के लिए शांति प्रार्थना की गई तो उसके बाद रथ आगे बढ़ पाया। तब से हर साल रथयात्रा के दौरान रास्‍ते में पड़ने वाली सालबेग की मजार पर जगन्‍नाथजी का रथ जरूर रुकता है।

 

यात्रा में शामिल होने दिल्ली से जगन्नाथ पुरी कैसे पहुंचे

दिल्ली से जगन्नाथ पुरी का सफर 31 घंटे का है। आप यहां के लिए सबसे पहले तो फ्लाईट लें। इसमें 2h 39m लग सकते हैं। इसके लिए आपको दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से भुवनेश्वर के बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान लेना है, जो पुरी का निकटतम हवाई अड्डा है। वहां से, आप पुरी पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस ले सकते हैं, जो लगभग 60 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा आप दिल्ली से सीधे जगन्नाथ पुरी के लिए ट्रेन भी ले सकते हैं। आपको यहां के लिए कई सारी ट्रेन मिल जाएंगी बस आपको पहले से टिरट बुक करके रखना चाहिए।

जगन्नाथ पुरी में रत्र यात्रा में शामिल होने या देखने के लिए कोई टिकट की जरूरत नहीं है। पर जब आप मंदिर जाना जा रहे हैं और यहां प्रसाद लेने की सोच रहे हैं तो यहां की ऑनलाइन साइट की मदद ले सकते हैं।

3 दिन की ट्रिप में ऐसे घूमें पुरी-

-सबसे पहले तो आप जगन्नाथ मंदिर जाएं।
-आप रामचंडी बीच (Ramchandi Beach) पर जाएं।
-कोणार्क सूर्य मंदिर घूमकर आएं। यहां आप एक खूबसूरत सुबह और शाम बीता सकते हैं।

कोणार्क में कई बाज़ार हैं जो सजावटी सामान, हस्तनिर्मित वस्तुएं, सहायक उपकरण, शॉल, हैंडबैग, पट्टा पेंटिंग, कढ़ाई के काम और बहुत कुछ बेचते हैं। सरकार द्वारा संचालित एम्पोरिया कोणार्क में सबसे अधिक बार देखी जाने वाली दुकानों में से एक है जो खरीदारी करने वालों का दिल जीत लेती है। अपनी कुछ पसंदीदा चीज़ें खरीद सकते हैं और यहां के फेमस फूड्स का स्वाद ले सकते हैं।