यदि शनि कुंडली के द्वादश भाव यानी व्यय भाव में आसीन हों, तो ये लोग आम लोगों से जुदा होते हैं। लेखन में इनकी विशेष रुचि होती है। यह शनि एकांतप्रिय बनाता है। चिंतक और विचारक होने के साथ दान और यज्ञ में इनकी रुचि होती है। ये स्वभाव से दयालु होते हैं। इनकी कल्पनाशीलता और रचनात्मकता विलक्षण होती है। नज़रिया अन्य लोगों से भिन्न और धारदार होता है। ये भिन्न या गुप्त तरीक़े से धन अर्जित करते हैं। किसी गुट या समूह का नेतृत्व भी करते हैं। कारागार से भी इनका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संबंध होता है। इनके शत्रु और विरोधी पहले सिर उठाते हैं, फिर धीरे-धीरे भाप बनकर उड़ जाते हैं। यदि यह शनि अशुभ हो, तो चिंताग्रस्त, विवेकहीन, अपव्ययी, उदास, झगड़ालु, निर्लज्ज और कठोर बनाता है। नेत्ररोग, उन्माद अथवा रक्तविकार से भी पीड़ित करता है। कभी-कभी असत्य मार्ग या ठगी से धन प्रदान करता है। ये प्रेम संबंधों से असंतुष्ट होते हैं व वैवाहिक जीवन में कष्ट भोगते हैं। देह में पीड़ा होती है या ये किसी एक अंग से वंचित हो सकते हैं। इनका सांसारिक पक्ष अशुभ, पर धार्मिक जीवन सुखद होता है। ये अद्‌भुत आध्यात्मिक उन्नति करते है। यह शनि मां के लिए अनुकूल नहीं है।

प्रश्न: नक्षत्र और राशियों में आपस में कोई सामंजस्य है? -विधि जायसवाल
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि हमारी पृथ्वी सौरमंडल का हिस्सा है। इसके समस्त ग्रह सूर्य से टूटकर बने हैं, जो गैस और धातुओं के ग़ुबार हैं। इनकी अलग-अलग रेडियो ऐक्टिविटी है, जो सृष्टि पर अपना असर डालती हैं। हमारे सौरमंडल के चारों ओर सितारों के ढेरों समूह हैं। इन्हीं चार-चार समूहों को एक नक्षत्र और नौ समूहों यानी सवा दो नक्षत्रों को एक राशि माना गया है। कुल 28 नक्षत्र हैं। अविजित नक्षत्र को राशि चक्र से पृथक रखा गया है। 27 नक्षत्रों को ही नक्षत्र माना जाता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में हो, उसे हमारा नक्षत्र और वह नक्षत्र जिस राशि का हिस्सा हो, वो हमारी राशि कहलाती है।

प्रश्न: घर में दक्षिण दिशा ख़राब क्यों होती है? -सीमा घोष
उत्तर: दक्षिण दिशा को अशुभ समझना भूल है। यह दिशा समृद्धि और आनंद की दिशा मानी जाती है। हां! हल्की होने पर यह दिशा शुभ फल नहीं देती। किसी भी प्रकार का हल्कापन या खुलापन नकारात्मक परिणाम का सबब बनता है। दक्षिण पूर्व या दक्षिण पश्चिम में शौचालय नहीं होना चाहिए। दक्षिण पश्चिम का कोना जीवन में मुख्य भूमिका का निर्वहन करता है। यहां रहने वाले के प्रभाव में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। इसलिए परिवार या प्रतिष्ठान के मुखिया का स्थान यही बनाते हैं। दक्षिण और पश्चिम में वॉर्डरोब, आलमारी या भारी सामान सुख-शांति, समृद्धि व आरोग्य में वृद्धि करते हैं। इस दिशा में उत्तर या पूर्व की ओर खुलने वाले लॉकर शुभ फल देते हैं।

प्रश्न: हथेली में यदि लालिमा अधिक हो, तो ज्योतिष में इसका क्या अर्थ है? क्या यह कष्टकारक है? -विजय राय
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि हथेली और हस्त रेखाओं का अध्ययन ज्योतिष नहीं, सामुद्रिक शास्त्र यानि हस्त रेखा विज्ञान का विषय है। सामुद्रिक शास्त्र में रक्त वर्ण यानी लाल रंग की हथेली को ऐश्वर्य का पर्याय माना जाता है। जिनकी हथेली में लालिमा ज़्यादा हो, उनके जीवन में अन्य लोगों की अपेक्षा संघर्ष कम और आनंद अधिक होता है। उनका भौतिक जीवन आनंद की छांव में बीतता है। अतः आपको इनसे बचने के किसी उपाय की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न: मुझे विशेष रूप से दिन में कामुक विचार बहुत आते हैं। दोस्तों से सदैव दुःख मिलता है। ऐसा किस ग्रह के कारण होता है? मेरी जन्म तिथि का ठीक-ठीक पता नहीं है। -प्रणीति बग्गा
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि अगर दिन में कामुक विचार परेशान करते हों, बहुत सारे यौन संबंधों से जुड़ने की इच्छा होती हो, मित्र शत्रुओं सा आचरण करते हो, अपराधी अच्छे लगते हों, बात-बात में ख़ून खौल उठता है या भाइयों से मनमुटाव रहता हो, तो यह स्थिति कुंडली में मंगल की ख़राब स्थिति को दर्शाती है। इससे देह में आलस्य रहता है और हथियार रखने की इच्छा होती है। ऐसे लोगों को प्रेम विवाह से पहले अपने फ़ैसले पर गहन मनन करना चाहिए।