सीढ़ियां बनाते समय किसी भी इमारत या भवन में यदि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन किया जाए तो उस स्थान पर रहने वाले सदस्यों के लिए यह कामयाबी और सफलता की सीढ़ियां बन सकती हैं। बस इतना सा आप समझ लें कि सीढ़ियों से ही प्राणिक ऊर्जा ऊपरी मंजिल तक पहुंचती है। वास्तु में सीढ़ियों का विशेष महत्व होता है।  वास्तु शास्त्र में घर के हर हिस्से के लिए नियम बनाए हैं, जिनसे परिवार में प्रेम भाव बना रहता है और समृद्धि भी घर आती है। वहीं अगर वास्तु दोष होता है तो कितनी भी मेहनत कर लें उसका फल पूरा नहीं मिलता है। इससे अवसाद और मानसिक तनाव बढ़ जाता है। इसलिए हर इंसान चाहता है कि उसके घर में किसी भी तरह का कोई वास्तु दोष ना हो। घर के वास्तु में सीढ़ियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सीढ़ियां घर में नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा भी लाती हैं और इसका सीधा असर घर में रहने वाले लोगों पर पड़ता है।

वास्तु विशेषज्ञ ने बताया कि भवन के दक्षिण-पश्चिम यानि कि नैऋत्य कोण में सीढ़ियां बनाने से इस दिशा का भार बढ़ जाता है जो वास्तु की दृष्टि में बहुत शुभ माना जाता  है। इसलिए  इस दिशा में सीढ़ियों का निर्माण सर्वश्रेष्ठ माना गया है इससे धन-संपत्ति में वृद्धि होती है एवं स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दक्षिण या पश्चिम दिशा में इनका निर्माण करवाने से भी कोई हानि नहीं है। अगर जगह का अभाव है तो वायव्य या आग्नेय कोण में भी निर्माण करवाया जा सकता है , परन्तु इससे बच्चों को परेशानी होने की सम्भावना होती है। घर का मध्य भाग यानि कि ब्रह्म स्थान अति संवेदनशील क्षेत्र माना गया है अतः भूलकर भी यहां सीढ़ियों का निर्माण नहीं कराएं अन्यथा वहां रहने वालों को विभिन्न प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

वास्तु विशेषज्ञ ने बताया कि ईशान कोण की बात करें तो इस दिशा को तो वास्तु में हल्का और खुला रखने की बात कही गई है अतः यहां सीढ़ियां बनवाना अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। ऐसा करने से पेशेगत दिक्कतें, धनहानि या कर्ज में डूबने जैसी समस्याएं सामने आती हैं। बच्चों का करिअर बाधित होता है।  शुभ फल की प्राप्ति के लिए ध्यान रहे कि सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए जैसे -5 ,7 ,9 ,11 ,15 , 17  आदि।

वास्तु विशेषज्ञ ने बताया कि सीढ़ियों के शुरू और अंत में दरवाजा होना वास्तु नियमों के अनुसार होता है लेकिन नीचे का दरवाज़ा ऊपर के दरवाज़े के बराबर या थोड़ा बड़ा हो। इसके अलावा एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी का अंतर 9  इंच सबसे उपयुक्त माना गया है । सीढ़ियां इस प्रकार हों कि चढ़ते समय मुख पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा की ओर हो और उतरते वक्त चेहरा उत्तर या पूर्व की ओर हो।