नई दिल्ली

बैंकों के पास हजारों करोड़ों रुपये यूं ही पड़े हैं। इन पैसों का कोई दावेदार नहीं है। फरवरी, 2023 में बैंकों ने 35,000 करोड़ रुपये आरबीआई (RBI) को ट्रांसफर किए। अगर किसी सेविंग या करेंट अकाउंट्स को दस साल तक ऑपरेट नहीं किया गया तो इसमें जमा राशि को अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स माना जाती है। इसी तरह अगर किसी फिक्स्ड और रिकरिंग डिपॉजिट्स में मैच्योरिटी की अवधि से 10 साल तक दावा नहीं किया जाता है तो यह अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स में आता है। इस अमाउंट को आरबीआई के डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड (DEAF) में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस अमाउंट का इस्तेमाल निवेशकों के बीच जागरुकता पैदा करने और एजुकेशन पर्पज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 2021-22 में डीईएएफ अकाउंट में 48,263 करोड़ रुपये जमा थे।

इस फंड में अमाउंट लगातार बढ़ती जा रही है। साल 2014-15 में यह अमाउंट 7,875 करोड़ रुपये थी जो 2015-16 में बढ़कर 10,585 करोड़ रुपये हो गई। 2016-17 में यह राशि 14,697 करोड़ रुपये, 2017-18 में 19,567 करोड़ रुपये, 2018-19 में 25,747 करोड़ रुपये, 2019-20 में 33,141 करोड़ रुपये, 2020-21 में 39,264 करोड़ रुपये और 2021-22 में 48,263 करोड़ रुपये पहुंच गई। हाल में आरबीआई ने 100 डेज, 100 पेज नाम से एक अभियान लॉन्च किया है। इसका मकसद इस फंड को उसके सही मालिक के पास पहुंचाना है। इसे एक जून से शुरू किया जाएगा। केंद्रीय बैंक ने सभी बैंकों से 100 दिन के भीतर हर जिले में टॉप 100 अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स का पता लगाने और इसे सेटल करने को कहा है।

कैसे करें दावा

हालांकि बैंकों का कहना है कि उनके पास इस काम के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं हैं। अब तक की व्यवस्था के मुताबिक डिपॉजिट का दावा करने की जिम्मेदारी इंडिविजुअल इनवेस्टर की है। यानी अगर आपका पैसा जमा है तो इसका दावा आपको करना है। यह थका देने वाली प्रोसेस है। इसके लिए आपको हर बैंक की वेबसाइट देखनी होगी कहीं उनकी लिस्ट में आपका नाम तो नहीं है। अगर आपका अकाउंट पुराना है तो आपको बैंक जाना होगा। इन मुश्किलों को दूर करने के लिए आरबीआई ने एक सेंट्रलाइज्ड वेब पोर्टल बनाने की बात कही थी। इस पर लोग कई बैंकों में अपने अनक्लेम्ड डिपॉजिट का पता लगा सकते हैं। हालांकि सेंट्रल बैंक ने इसके लिए कोई टाइमलाइन नहीं बताई है।

अगर किसी बैंक में दो साल से अधिक समय तक कोई एक्टिविटीज नहीं होती है तो बैंक को ईमेल या फोन के जरिए ग्राहक से संपर्क करना होता है। लेकिन कई बार ग्राहकों का नंबर बदल जाता है, वे शहर बदल देते हैं या विदेश चले जाते हैं। कई मामलों में डिपॉजिटर की मौत हो जाती है और उसके बच्चों को डिपॉजिट की जानकारी नहीं होती है। इस तरह बैंक उनसे संपर्क नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में बैंक 10 साल बाद इस रकम को आरबीआई के DEAF अकाउंट में डाल देता है। अगर आपको बैंक की वेबसाइट पर अपना या अपने किसी रिश्तेदार के नाम का पता चलता है तो आपको इसके लिए एक क्लेम फॉर्म जमा करना होगा। हर बैंक का फॉर्म अलग तरह का होता है। साथ ही आपको केवाईसी प्रॉसीजर पूरा करने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेज देने होंगे।

 

 

हालांकि बैंक यह नहीं बताते हैं कि अकाउंट में कितने पैसे हैं। सभी दस्तावेजों को वेरिफाई करने के बाद बैंक अकाउंट को ऑपरेशनल बनाकर उसमें पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं या इसे आपके अकाउंट में ट्रांसफर कर सकते हैं। आपको इस पर कुछ ब्याज भी मिल सकता है। हालांकि अनक्लेम्ड रकम पर ब्याज आरबीआई द्वारा तय रेट पर मिलता है। आप किसी भी अकाउंट के लिए दावा कर सकते हैं चाहे वह कितना भी पुराना क्यों न हो। बैंकों को 15 दिन के भीतर इसे सेटल करना होता है। अगर बैंक ऐसा नहीं करते हैं तो आप बैंक के ग्रिवांस सेल से संपर्क कर सकते हैं। अगर एक महीने के भीतर आपकी समस्या का समाधान नहीं होता है तो आप Banking Ombudsman के पास शिकायत कर सकते हैं।