गंज बासौदा
नवीन शिक्षा सत्र खुले हुए एक सप्ताह गुजरने को है क्षेत्र में कई दर्जन स्कूल जो अतिथी शिक्षकों के भरोसे चलते थे। लेकिन अभी तक सरकार द्वारा अतिथी शिक्षकों को रखने की व्यवस्था नहीं की गई है। लेकिन शिक्षकों की भारी कमी के अतिथियों के अभाव में कई स्कूलों में क्लास नहीं लग पा रही हैं। वहीं विगत डेढ़दशक से शासन प्रशासन की दोहरी नीति का अतिथि शिक्षक प्रारंभ से ही शिकार होते चले आ रहे हैं।
डीएड , बीएड और स्नात्कोत्तर पास किये हुए बेरोजगार युवक युवतियों के द्वारा लगातार मजदूरी से भी कम वेतन पर स्कूलों में ईमानदारी से पढाई करवाई जा रही है। एक दशक से अधिक होने के बाद भी प्रदेश सरकार एवं प्रदेश में बैठे शिक्षा विभाग के आला अधिकारी इन अतिथि शिक्षकों को स्थाई करने की कोई नीति नहीं बना पा रहे हैं। वहीं हर साल इस स्कूल से उस स्कूल में अतिथी शिक्षक ों को भटका रहे हैं। वहीं इन अतिथि शिक्षकों से कार्य सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा अधिक लिया जाता है ।
सही मायने में शिक्षा के गिरते स्तर को थामने वाली मुख्य धुरी का कार्य कर रहे हैं और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कई जिलों और शहरों में शासकीय विद्यालयों का अस्तित्व भी इन्हीं की दम पर बचा हुआ है। लेकिन शासन और प्रशासन के दोहरे मापदण्ड और सौतेले व्यवहार के चलते यह शोषण का भी शिकार हो रहे हैं। कई अतिथि शिक्षकों को तो मिलने वाला वेतन अपने शिक्षण संस्था तक आवागमन के किराये तक के बराबर नहीं मिल पा रहा है। कई विद्यालयों में देखने में आता है कि समयकाल के मान से इन्हें सीमित वेतन तो मिलता ही है वहीं स्थाई शिक्षकों की बेगारी भी करने को मजबूर होना पड़ता है। वहीं साल में 7-8 माह ही कार्य कराया जाता है। बाकि समय घर बैठा दिया जाता है। वहीं कई स्कूलों में सरकार द्वारा चपरासी नहीं रखे गये हैं जहां इन्हीं अतिथि शिक्षकों द्वारा स्कूल का ताला खोलने से लेकर साफ सफाई का जिम्मा भी इन्हीं अतिथियों पर रहता है।
सौतेले व्यवहार के शिकार शिक्षा के पहरेदार
शासन द्वारा भले ही उन विद्यालयों को बंद करने की प्रक्रि या कर रही हो जिनमें विद्यार्थियों की संख्या या शिक्षकों की संख्या कम हो । लेकिन विगत कई वर्षांे से अधिक समय में देखने में आ रहा है कि विद्यालयों में शिक्षकों की कमी होने के चलते अतिथि शिक्षकों के द्वारा तन , मन का समर्पण कर शिक्षण कार्य कराया जा रहा है। इन्हें मिलने वाले भुगतान से कई अधिक खर्च तो इन्हें कर्तव्य स्थल तक पहुंचने में ही हो जाती है। इन सब स्थितियों से जूझते हुए भी ये शिक्षा के प्रहरी देश के नौनिहालों के भविष्य को किसी कुशल कारीगर की तरह निखारने में लगे हैं। शासन की दोहरी नीति का भी यह शिकार होते आ रहे हैं। अतिथि शिक्षको ंका कहना है कि हमारी उम्र अब अधिक होने से अन्य किसी संस्था में नौकरी करने तक का अवसर नहीं मिल पा रहा है शासन को लंबे समय से शिक्षण कार्य कराने वाले अतिथि शिक्षकों को संविदा शिक्षक के रूप में भर्ती करना चाहिए ।
न घर के बचे न घाट के
अतिथि शिक्षकों को स्कूलों में अध्ययन कराते समय शासन द्वारा स्थाई करने जैसी प्रक्रिया पर शुरू से ही ध्यान देना चाहिए था । इस कार्य को संपन्न कराते कई अतिथि शिक्षकों की उम्र ओवर ऐज हो रही है और कई इसे पार भी कर चुके हैं। लेकिन इन्हें स्थाई रूप से किसी प्रकार की प्रक्रिया शासन द्वारा वर्तमान समय तक लागू नहीं की गई है। अतिथि शिक्षकों द्वारा लगातार कई वर्षों पर तहसील स्तर , जिला स्तर एवं प्रदेश स्तर पर सैकड़ों धरना आंदोलन किये गये। मंत्री , विधायक एवं अधिकारियों को आवेदन एवं ज्ञापन सौंपे गये । लेकिन कुंभकर्णी नींद में बैठी सरकार द्वारा अभी तक अतिथि शिक्षकों को आश्वासन ही दिया जा रहा है। लेकिन इनके तनख्वाह बढ़ाने एवं स्थाई करण के बारे में कोई विचार नहीं किया जा रहा है।
शासन द्वारा इन अतिथि शिक्षक ों की तनख्वाह निर्धारित करने के बावजूद भी स्कूलों में बैठे प्राचार्य एवं प्रभारियों द्वारा इन अतिथि शिक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है और जरूरत से ज्यादा कार्य लिया जा रहा है। इन सभी के द्वारा एक सवाल उठना लाजमी है कि जिन बच्चों को अपने भांजे भांजियां कह कहकर प्रदेश के मुखिया थकते नहीं है उन्हीं के माता पिता किस संकट से गुजर रहे हैं यह उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है। वहीं विपक्ष सदन में अपने मतलब के और कमीशन वाली योजनाओं पर तो जोर शोर से हंगामा करता है लेकिन वर्तमान में कई परिवारों पर आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं उन्हें किसी की चिंता नहीं है। इस उम्र में आकर अतिथि शिक्षकों के मुंह से यही बात सुनने में और चचार्ओं में आने लगी कि अब तो शासन ने हमें न घर का छोड़ा और न ही घाट का । पूर्व कांग्रेस सरकार ने स्थाई करने का आश्वासन दिया गया था लेकिन अचानक सरकार में आये बदलाव के कारण पिछले तीन वर्ष बीत चुके हैं लेकिन अभी तक वर्तमान सरकार ने अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया है।