रीवा
रीवा जिले के सिरमौर नगर परिषद के वार्ड क्रमांक 12 में इंटार परिवार की तीसरी पीढ़ी भी शिक्षकीय परंपरा का लगातार निर्वहन कर रही है उल्लेखनीय है कि कितना ही परिवर्तन क्यों ना हो जाए परिवेश में बदलाव शासन की नीति एवं सामाजिक सोच में परिवर्तन के बावजूद सिरमौर इटार परिवार में एक घराना ऐसा है कि जो लगातार तीसरी पीढ़ी द्वारा भी शिक्षकीय परंपरा का लगातार निर्वहन कर रहा है शिक्षक और शिक्षा का महत्त्व सनातन काल से लेकर आज भी अपना एक अलग स्थान रखता है इसी कड़ी में मैं आज इस इटार परिवार का जिक्र करने जा रहा हूं जो शिक्षक की निर्वहन करते हुए तीसरी पीढ़ी मसाल लिए हुए खड़ी है ज्ञात हो कि सिरमौर क्षेत्र के अति प्रतिष्ठित एवं जिन्हें इस क्षेत्र का आदि शिक्षक माना गया है वह है श्री धुरंधर प्रसाद पांडे जी जो कि राजा शाही हुकूमत से लेकर लोकतंत्र सत्ता तक शिक्षकीय कार्य करते हुए सेवानिवृत्त पश्चात भी अपने निज गृह सावण्य् आश्रम में छात्रों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करते हुए जरूरतमंद छात्रों का मार्गदर्शन करते रहे 92 वर्ष की उम्र में शरीर का त्याग किया इनके शिक्षक की कार्य एवं मार्गदर्शन प्राप्त छात्रों ने चहुंमुखी क्षेत्रों में परचम लहराया इनके सुपुत्र यानि कि दूसरी पीढ़ी प्रोफेसर बसंत लाल पांडे जी जिन्होंने छात्र जीवन से ही अपने पिता जी के नक्शे कदम में चलते हुए छात्र राजनीति में प्रवेश करते हुए समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रहे और महाविद्यालय के प्रथम छात्र संघ के अध्यक्ष रहते हुए सामाजिक राजनैतिक धार्मिक क्षेत्रों में अपनी आमद पश्चात आप सिरमौर महाविद्यालय में प्राध्यापक पद पर रहते हुए छात्रों को शिक्षित किया एवं उनका मार्गदर्शन भी करते रहे साथ ही यमुना प्रसाद शास्त्री से लेकर कुंमर अर्जुन सिंह के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे आज भी विंध्य में प्रोफेसर पांडे जी के साथी एवं छात्र चंहुमुखी क्षेत्रों में आमद रखते हैं प्रोफेसर बसंत लाल पांडे जी का निधन 66 वर्ष की अवस्था में हो गया तीसरी पीढ़ी में प्रोफ़ेसर बसंत लाल पांडे जी के सुपुत्र द्वाय वेदपाणि पांडे एवं अलौकिक पांडे भी अपनी पुश्तैनी विरासत को कायम रखते हुए पितामह एवं पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए इसे कायम रखने में सतत प्रयत्नशील हैं एवं लगातार शिक्षकीय कार्य एवं मार्गदर्शन दे रहे हैं इस संबंध में जब शिक्षक वेदपाणि पांडे से चर्चा की तो उन्होंने बताया की शिक्षकीय कार्य का निर्वहन मेरे पितामह एवं पिता द्वारा किया गया जिसे आज कायम रखने में हम लोग भी सफल हैं इसे मैं अपना गौरव मानता हूं